आज फिर कुछ लिखने का जी कर रहा है,
आज फिर पीने का जी कर रहा है ,
भर गए थे जो घाव ,
अज फिर उन्हें कुरेदने का जी कर रहा है ,
आज फिर कुछ लिखने का जी कर रहा है ,
छोड़ आये थे जो गलियां ,
आज फिर उन गलियों से गुजरने का जी कर रहा है ,
छोड़ ए थे जो जाम उन्हें फिर पीने का जी कर रहा है ,
यूँ ही नहीं निकलती इस दिल से दुआ ,
आज फिर गम में डूबने का जी कर रहा है ,
आज फिर कुछ लिखने का जी कर रहा है ,
अभी तो संभाला था हमने होश ,
आज फिर होश खोने का जी कर रहा है ,
आज फिर कुछ लिखने का जी कर रहा है !
Meetha dard. Loved reading it.
You should write more often.
Thanks for the appreciation :))